मद्रास हाईकोर्ट
आमतौर पर कोर्टरूम को गंभीरता, मर्यादा और न्याय का मंदिर माना जाता है, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट में 28 जुलाई को एक मामले में न्याय के मंदिर में जज और वकील के बीच बहस हंगामे तब्दील हो गया. दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट में सोमवार को एक असाधारण घटनाक्रम सामने आया जब जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने अधिवक्ता वंचिनाथन से सीधे तौर पर उनके एक बयान को लेकर जवाब तलब किया, जिसमें एक वकील ने जज पर आरोप लगाया था कि वो जातिवादी हैं. जज साहब ने इस मामले पर वकील से जो कहा उसने ‘कोर्टरूम को कॉमेडी’ में तब्दील कर दिया.
घटना के समय मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम के सामने एक मामले की सुनवाई चल रही थी. बहस के दौरान एक वकील ने उन पर जाति के आधार पर पक्षपात करने का आरोप लगा दिया. इतना सुनना था कि कोर्ट में सन्नाटा छा गया, लेकिन जज साहब ने वकील से बेहद ठंडे और व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "You are a comedy piece, Sir!"
जातिवादी आरोप को हम हल्के में नहीं ले सकते
जज ने आगे यह भी कहा कि अगर ऐसे आरोपों को हल्के में लिया गया, तो पूरी न्यायपालिका पर सवाल उठेंगे. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत की गरिमा को बरकरार रखना जरूरी है और किसी भी जाति या व्यक्तिगत एजेंडा को न्याय प्रक्रिया में घुसने नहीं दिया जाएगा.
इसके बाद हाईकोर्ट के जज ने वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह अदालत किसी जाति विशेष की नहीं बल्कि कानून और संविधान की है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि इस तरह के अनुशासनहीन आरोपों पर रोक नहीं लगी, तो यह पूरे न्यायिक सिस्टम के लिए खतरनाक संकेत हो सकता है.
मौखिक जवाब न देने पर जज बोले...
इससे पहले सुनवाई के दौरान जब वंचिनाथन ने मौखिक रूप से जवाब देने से इनकार किया और कोर्ट से लिखित आदेश पारित करने को कहा, तब जस्टिस
स्वामीनाथन ने तीखी टिप्पणी की- “यू आर ए कॉमेडी पीस… मुझे नहीं पता कि आप लोगों को किसने क्रांतिकारी कहा. आप सब कॉमेडी पीसेज हैं. “
जातिगत आरोप स्वीकार्य नहीं
जस्टिस स्वामीनाथन ने स्पष्ट किया कि किसी निर्णय की कठोर आलोचना स्वीकार्य है, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रह जैसे आरोप एक गंभीर सीमा लांघते हैं. "श्रीमान वंचिनाथन, मुझे आपके द्वारा मेरे निर्णयों की कड़ी आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब आप जातिगत पक्षपात का आरोप लगाते हैं, तो मामला बिल्कुल अलग हो जाता है."
कोर्ट ने एक वीडियो इंटरव्यू का हवाला दिया जिसमें वंचिनाथन ने दावा किया था कि कोर्ट ने एक वरिष्ठ दलित वकील को निशाना बनाया जबकि एक ब्राह्मण वकील को बख्श दिया गया. इस पर न्यायमूर्ति ने कहा कि इस तरह के सामान्यीकृत और बिना आधार वाले बयान गंभीर चिंता का विषय हैं.
चीफ जस्टिस करेंगे इस मामले पर सुनवाई
चार साल से आप मेरी निंदा कर रहे हैं. मैंने कभी आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. हम प्रक्रिया के नियमों को समझते हैं. हम मूर्ख नहीं हैं. हम इस मामले को मुख्य न्यायाधीश या उपयुक्त पीठ के समक्ष प्रस्तुत करेंगे. पूरा इकोसिस्टम हमारे खिलाफ खड़ा हो गया है. हमें सब पता है, लेकिन हम डरने या झुकने वाले नहीं हैं. न्यायिक स्वतंत्रता सर्वोच्च है."
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह कार्यवाही अवमानना की नहीं है, बल्कि केवल वंचिनाथन को यह स्पष्ट करने का अवसर देने के लिए है कि क्या वे अपने आरोपों पर अब भी कायम हैं. आदेश में दर्ज किया गया कि वकील 25 जुलाई और 28 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित हुए. वंचिनाथन ने तर्क दिया कि यह कार्यवाही उनके द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को की गई शिकायत से जुड़ी है, जिसे कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया.
8 पूर्व जजों ने की चीफ जस्टिस से हस्तक्षेप की मांग
इस बीच मद्रास हाईकोर्ट के आठ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति के. चंद्रू, न्यायमूर्ति डी. हरिपथ मन, न्यायमूर्ति एस.एस. सुंदर, न्यायमूर्ति एस. विमला आदि ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है. उनका कहना था कि न्यायिक आचरण से जुड़ी शिकायतों को संबंधित न्यायाधीश के बजाय संस्थागत रूप से मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए.